अभी कुछ ही दिन तो हुआ था, हमारे जन्म को जब हमारे साथ और तीन भाइयों ने जन्म लिया। मैं, मेरी मां और हम तीन भाइयों ने हमारे मालिक के घर अच्छी धमा चौकड़ी मचा रखी थी।
असल बात यह है कि आशी दीदी एक दिन मेरी माँ को बगल के पार्क से उठा लाई थी। मेरी माँ तब बहुत छोटी थी, और किसी बड़े कुत्ते ने उसे अधमरा कर मरने को छोड़ दिया था। आशी दीदी कि नजर जब उस से पर पड़ी, वह अपने आप को रोक नहीं पाई और उसने मेरी माँ को बचाने का संकल्प ले लिया।
आशी दीदी के गोद मे, खून से लथपथ मेरी माँ को जब आशी दीदी के पापा ने देखा तब वे भी मेरी माँ के देखभाल में लग गए। मालिक ने खून से लथपथ माँ की पहले सफाई की, फिर नहलाया और फिर प्राथमिक उपचार की, फिर बाद में डॉक्टर के पास ले गए।
करीब 10-12 दिनों के लगातार मेडिकल हेल्प से मेरी माँ की जान बची । पहले तो मेरी माँ को उसके परिवार के साथ जोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। शायद कमजोर समझ कर उसके परिवार वालों ने उसे नकारा कर दिया। मेरी माँ फिर से उसी घर में आ गई। धीरे-धीरे वह इस घर का हिस्सा हो गई। मेरी माँ ने धीरे धीरे इस घर में ऐसा जगह बना लिया कि मत पूछो। कभी वह मालिक के बेड पर, तो कभी आशी दीदी के बेड पर, तो कभी उनकी रजाई में रहने लगी।
धीरे-धीरे उसमें इंसानों के कुछ लक्षण भी आ जाए। जैसे शौच बाहर करना या जब शौच की इच्छा हो तब घर के किसी व्यक्ति को आवाज देना ताकि उसे बाहर ले जाया जा सके आदि। हमारे कॉलोनी में पानी सप्लाई आने पर सायरन बजता है ताकि लोग अपने पम्प को चला कर अपनी टंकी भर लें। मां जैसे-जैसे बड़ी होती गई वह उस सायरन से अपने सुर को मिलाने लगी और घर के लोग इस संगीत का पूरा आनंद लेने लगे।
समय हंसते हंसते खेलते गुजरने लगा। अब बचपन की दहलीज को छोड़कर बड़ी हो गई और बहुत ही सुंदर भी। कॉलोनी के सारे कुत्ते उसके आसपास मंडराने लगे। उनमें से एक काला कुत्ता कुछ ज्यादा ही मेहनती निकला जिसका मेरी मां के साथ प्रेम हो गया। मेरे मालिक मालकिन और दीदी के लाख कोशिश के बाद भी वह अपने आप को नहीं रोक पाई । एक दिन मां जब मालिक के साथ पार्क में गई तब अचानक से मालिक की आंखों से ओझल हो गई और उसी काले कुत्ते के साथ उसने सहवास कर लिया जो कभी-कभी घर दे दरवाजे पर आ कर उसे फुसलाने की कोशिश करता था।
खैर छोड़िए चूंकि माँ प्रसव में थी, घर पर उसका ध्यान रखा जाने लगा। वैसे ही जैसे किसी प्रेग्नेंट महिला का रखा जाता है। मेरी माँ के सेहत तथा खान-पान का पूरा ध्यान रखा जाने लगा। धीरे-धीरे माँ के शरीर से प्रसव झलकने लगा। मालकिन ने इंटरनेट पर पूरा रिसर्च किया और डिलीवरी डेट की जानकारी प्राप्त की। पूरी फैमिली ने माँ की सेवा की। एक समय ऐसा भी आया जब माँ के प्रसव को ध्यान में रखते हुये, पूरी फैमिली को जयपुर पर्यटन यात्रा रद्द करना पड़ा।
जैसा कि जन्म लेने के बाद मैंने मालकिन को कहते सुना, मेरे जन्मदिन के समय वह दिल्ली में नहीं थीं। मेरे जन्म के समय मालिक और आशी दीदी मौजूद थे। उन्होंने ही हमें सबसे पहले इस दुनिया में आते देखा।चूंकि उस समय मालकिन घर पर नहीं थीं, मेरे जन्म के समय का किस्सा भी कौतूहल से भरा था जो मैं कभी आपको फुर्सत में बताऊंगी।
आपकी कूकी।