पूज्य दादाजी की छड़ी तो मिली टांड़ पर, साथ ही बड़े बड़े पुराने बक्से भरे सामान…. पापा का पुराना टेप रिकॉर्डर जो अभी भी गाता है, … मम्मी की कश्मीरी शालें, कई सारे पीतल के बर्तन और एंटीक ज्वैलरी बॉक्सेस…
साहब के डिजिटल डायरियां, कैसेट्स और दुनिया भर की ट्रॉफीज….. मैना बेटी तो भूल ही गई थी उसका टॉय कंप्यूटर, कैसियो, थिया स्टिल्टन की किताबें और ढेर सारी गुड़ियां…. और गुड़ियों की गृहस्थियां…
और हां, कोनों कोनों में इकट्ठा किया हुआ मेरा गार्बेज भी :)) पॉलिथिन का बैग, कार्डबोर्ड के डब्बे, ड्राइंग शीट्स और सूखे कलर्स… कभी तो उपयोग होगा.. मैना के स्कूल के किसी प्रोजेक्ट में…
सब मिला अलमारियों में, ड्राअर में, दीवारों पर, फर्श पर, आंगन में, छत पर, बैकयार्ड में, सीढ़ियों पर, रेलिंग पर, झूले पर, पेड़ो पर, विंडो सिल पर और किचेन के प्लेटफार्म पर….. सब मिला जो सहेज कर रखा था, इतने सालों से…. मैना के होने के पहले से….
ये जो घडी टंगी हुई है दीवार पर हमारी शादी की, इसने देखा है पल पल हर सेकंड…… जायेगी तो ये भी हमारे साथ…
पर कैसे ले जायेंगे यहां से मैना का बचपन, साहब के महीनों बाद ड्यूटी से लौटने का इंतजार, सुबह 5 से रात 11 तक की घर और ऑफिस की नॉन-स्टॉप आप धापी, आये दिन मेहमानों का तांता और उसमे मेरा अकेलापन, पड़ोसियों का प्यार और सोसाइटी की रौनक….
बस रह जायेगी…..
कोयल की आवाज, पौधों की खुशबू, लॉन की धूप, शावर और नल, दरवाजे चटकनियां… और ये मैरून मेन गेट…. किसी और का इंतजार करते हुए….. आगे बढ़ कर किन्ही और हाथों को छूने के लिये….
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