पत्रकारिता का आरम्भ मेरी नज़र में तब से हुआ जब मानव ने नगाड़े बजा-बजा कर अपने सन्देश भेजने शुरू किये। और तब से लेकर आज तक अनगिनत सोपानों को पार कर अपने परिष्कृत रूप में पत्रकारिता का हर माध्यम अपने-अपने नगाड़े बजा कर डंके की चोट पर अपने सन्देश दृश्य और श्रव्य रूप में प्रसारित कर रहा है। आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के युग में जहाँ पत्रकारिता का स्वरूप अपने आप में पूर्णता लिए हुए है वहीं पर उस पर कई आरोप भी लग रहे हैं, जिससे अंतत: आम आदमी ही प्रभावित होता दिखाई पड़ता है- फिर चाहे वह माध्यम दृश्य हो या श्रव्य।
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