श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित श्री कृष्ण का जो संदेश हम सब लोग जो इसे देखते-पढ़ते रहे हैं, वे हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी रहे हैं।
आज के इस समय में, विशेष रूप से कोविड के इस समय में, यह शिक्षा न केवल भारतीयों के लिये, बल्कि पूरे संसार के लिये महत्वपूर्ण है। किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व उसके शरीर के साथ ही है। इस शरीर के विनाश के साथ ही व्यक्ति का विनाश हो जाता है। बस उसके सद्गुणीय कर्म ही लोगों की स्मृति मे बने रह जाते हैं, यदि उसने कुछ ऐसा किया हो तो। यद्यपि कि आत्मा अवश्य अजर, अमर है, तथापि उसे भी कर्मण्य होने हेतु शरीर की आवश्यकता है। अच्छे कर्म करने के लिये, किसी की भी सहायता करने के लिये, सहानुभूति, सम्वेदना, स्नेहसिक्त किसी भी कर्म हेतु यहाँ तक कि परोपकार के कर्म के लिये तो छोड़ ही दीजिये, स्वयं के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए भी, और तो और स्वयं के अस्तित्व को निरोग बनाए रखने के लिये जिससे खुद को ही कष्ट ना हो, दूसरों की परवाह करना तो बाद की बात है, स्वयं को भी एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता है। स्वस्थ शरीर के बाद ही मानसिक संतुलन की बात की जा सकती है। जब शरीर स्वस्थ होगा तभी स्वस्थ मानसिकता होगी और तभी आप स्वयं का उपकार एवं उद्धार करने में और तभी आप दूसरों का परोपकार कर जीवन को सार्थक करने मे समर्थ होंगे। अच्छा जीवन स्वयं के लिये तो जीना ही है पर साथ ही बिना किसी अपेक्षा के दूसरो के मुख-मण्डल को आह्लादित करने वाला जीवन, न केवल स्वयं को आह्लादित कर जाता है, वरन परमानंद का स्वाद भी आपको चखा जाता है। यही अनुभूति सफल मानव जीवन, चाहे वह पृथ्वी के किसी भी छोर का क्यों हो, के अस्तित्व का आधार-स्तम्भ है।